हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो समाज में विवाह, तलाक और गुजारा भत्ता से जुड़े विवादों को एक नई दिशा देता है। यह मामला एक भारतवंशी अमेरिकी नागरिक से जुड़ा है, जो अमेरिका में आईटी कंसल्टेंसी का बड़ा बिजनेस चलाते हैं। उन्होंने 2021 में भारत की एक महिला से शादी की थी, लेकिन उनकी शादी कुछ ही महीनों में टूट गई। तलाक के बाद उनकी दूसरी पत्नी ने उनसे पहली पत्नी के बराबर 500 करोड़ रुपये की गुजारा भत्ता राशि की मांग की।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस मांग को अनुचित ठहराया और केवल 12 करोड़ रुपये की राशि तय की। इसमें 10 करोड़ रुपये स्थायी गुजारा भत्ता और 2 करोड़ रुपये उनकी ससुराल के फ्लैट खाली करने के लिए शामिल हैं।
दूसरी शादी का विफल होना और विवाद
यह मामला तब शुरू हुआ जब इस आईटी कंसल्टेंट ने दूसरी शादी की। पहली शादी के टूटने के बाद उन्होंने अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता और अमेरिका में एक घर दिया था। लेकिन उनकी दूसरी शादी भी कुछ महीनों में टूट गई। तलाक के बाद दूसरी पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उन्हें भी पहली पत्नी के बराबर गुजारा भत्ता मिलना चाहिए।
पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए अपने विवाह को पूरी तरह से समाप्त करने की अपील की। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि दूसरी पत्नी ने उनके साथ बेहद कम समय बिताया और उनके खिलाफ कई कानूनी मामले भी दर्ज कराए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसके मायने
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस पंकज मित्तल शामिल थे, ने इस मामले में गहन विचार-विमर्श किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता का उद्देश्य केवल पत्नी को गरीबी से बचाना और सामाजिक स्तर बनाए रखना है। यह पति-पत्नी के बीच संपत्ति के बराबरी का माध्यम नहीं होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि दूसरी पत्नी पहली पत्नी के बराबर राशि की मांग नहीं कर सकती क्योंकि शादी के दौरान बिताया गया समय, संबंध की गहराई और दोनों पक्षों की स्थिति अलग-अलग थी।
गुजारा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 73 पन्नों के विस्तृत फैसले में गुजारा भत्ता से जुड़े कानूनों की व्याख्या की। कोर्ट ने बताया कि:
- गुजारा भत्ता पत्नी को गरीबी से बचाने, उसकी गरिमा बनाए रखने और सामाजिक न्याय दिलाने के लिए है।
- गुजारा भत्ता का निर्धारण पति की वर्तमान आय और जीवन शैली पर आधारित होता है, न कि उसकी भविष्य की प्रगति पर।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी को पति की संपत्ति के बराबर हिस्सा देने की मांग करना अनुचित है, खासकर जब संबंध अल्पकालिक रहा हो।