मां-बाप की सेवा और देखभाल हर संतान की जिम्मेदारी है। हमारी संस्कृति इसे जीवन का महत्वपूर्ण संस्कार मानती है। लेकिन आधुनिक समाज में कई बार संतान इस जिम्मेदारी को भूल जाती है। इसी पर मद्रास हाईकोर्ट का एक अहम फैसला (High Court decision on parents’ property) सामने आया है, जिसने समाज को झकझोर दिया है। तमिलनाडु के तिरुपुर जिले में हुई एक विशेष कानूनी लड़ाई के दौरान हाईकोर्ट ने माता-पिता के संपत्ति अधिकारों को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। आइए जानते हैं इस फैसले का विवरण और इसके सामाजिक प्रभाव।
मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला
तमिलनाडु की रहने वाली शकीरा बेगम (Shakira Begum) ने अपने बेटे मोहम्मद दयान के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में संपत्ति निपटान पत्र को रद्द करने की अपील की थी। शकीरा बेगम ने सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने बेटे के भरण-पोषण के वादे पर संपत्ति का निपटान किया था। लेकिन उनका बेटा अपने वादे को निभाने में असफल रहा और माता की देखभाल में विफल रहा।
मामला कोर्ट तक पहुंचा, जहां मद्रास हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने मां के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि अगर कोई संतान वायदे के मुताबिक माता-पिता की देखभाल करने में असफल रहती है, तो माता-पिता को संपत्ति वापस लेने का पूरा अधिकार है।
माता-पिता को संपत्ति पर अधिकार
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि संपत्ति के निपटान पत्र में यह उल्लेख है कि संपत्ति स्नेह और प्यार के आधार पर दी गई थी, तो माता-पिता उसे एकतरफा रद्द कर सकते हैं। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने इस मामले में कहा कि माता-पिता की संपत्ति पर उनका प्राथमिक अधिकार होता है और वे इसे अपनी इच्छा से वापस ले सकते हैं, यदि संतान उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असफल रहती है।
जज की टिप्पणी
जस्टिस सुब्रमण्यम ने अपने फैसले में कहा कि जब मानवीय आचरण बुजुर्ग नागरिकों के प्रति उदासीन हो और उनकी देखभाल या गरिमा की रक्षा नहीं की जाती, तो ऐसे में उन्हें अपनी संपत्ति वापस लेने का अधिकार मिलना चाहिए। यह निर्णय केवल कानून का पालन नहीं करता बल्कि बुजुर्गों के अधिकारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का भी कार्य करता है।
माता-पिता की रक्षा के लिए कानून
मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों को एक नई उम्मीद दी है। इसके साथ ही, पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस मेनटेनेंस एंड वेलफेयर एक्ट (Parents and Senior Citizens Maintenance and Welfare Act) जैसे कानूनी प्रावधान भी उनके अधिकारों को संरक्षित करते हैं। इस अधिनियम के तहत, माता-पिता को अपने बच्चों से उचित भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार है।
अगर बेटा या बेटी अपने माता-पिता की देखभाल में विफल रहते हैं, तो वे इस कानून के तहत कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय इस कानून को और मजबूती प्रदान करता है और बुजुर्गों के अधिकारों को सुनिश्चित करता है।
समाज पर प्रभाव
मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में एक मजबूत संदेश देता है। यह निर्णय संतान को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराने के साथ-साथ माता-पिता के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
बुजुर्ग नागरिकों की देखभाल और उनकी संपत्ति पर उनके अधिकार को संरक्षित करना समाज के लिए एक नई दिशा का संकेत देता है। यह उन माता-पिता के लिए राहत का संदेश है, जो अपने बच्चों की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।