मकान मालिक और किराएदार के बीच किराए को लेकर विवाद होना आम बात है। कई बार किराएदार न तो समय पर किराया देता है और न ही मकान खाली करता है। ऐसे हालात में मकान मालिक को कानूनी विकल्प अपनाना चाहिए। यह तरीका न केवल विवाद को सही तरीके से हल करता है, बल्कि मकान मालिक के अधिकारों की सुरक्षा भी करता है।
रेंट एग्रीमेंट क्यों है जरूरी?
एडवोकेट सुधीर सहारण का कहना है कि मकान मालिक को हमेशा रेंट एग्रीमेंट के साथ ही अपनी प्रॉपर्टी किराए पर देनी चाहिए। यह दस्तावेज़ किराए की राशि, भुगतान की तिथि और किराया न देने के परिणामों का स्पष्ट उल्लेख करता है। अगर किराएदार समय पर किराया नहीं देता है, तो रेंट एग्रीमेंट कानूनी कार्रवाई का सबसे मजबूत आधार बनता है।
सबसे पहले नोटिस भेजें
यदि किराएदार किराया नहीं देता है, तो सबसे पहले उसे कानूनी नोटिस भेजें। नोटिस में बकाया किराए की डिटेल, भुगतान की समय सीमा और भुगतान न करने की स्थिति में कानूनी परिणामों का जिक्र करें। यह नोटिस इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट 1872 के प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए।
कोर्ट में करें केस
अगर नोटिस के बावजूद किराएदार रेंट नहीं देता है, तो मकान मालिक अदालत का रुख कर सकता है। पहले चरण में केस निचली अदालत में दायर करें। यदि मकान मालिक ने सभी कानूनी शर्तें पूरी की हैं और वह रेंट पाने का हकदार है, तो अदालत मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाएगी।
आखिरी उपाय बेदखली कार्यवाही
यदि किराएदार लगातार किराया देने में विफल रहता है, तो मकान मालिक बेदखली की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। भारत में बेदखली कानून राज्यवार अलग-अलग होते हैं, इसलिए इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले किसी अनुभवी वकील की सलाह लेना अनिवार्य है।
महत्वपूर्ण सुझाव
- रेंट एग्रीमेंट हमेशा लिखित और कानूनी रूप से मान्य होना चाहिए।
- नोटिस और कोर्ट की प्रक्रिया कानूनी दायरे में रहकर ही करें।
- किसी भी झगड़े या विवाद से बचने के लिए शांत और प्रोफेशनल दृष्टिकोण अपनाएं।