जब भी हम निवेश करने का सोचते हैं, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में यह आता है कि उस योजना पर कितना ब्याज मिलेगा। अक्सर हम यही मानते हैं कि ज्यादा ब्याज दर का मतलब ज्यादा मुनाफा होता है। लेकिन, यह जरूरी नहीं है कि हर बार ऐसा ही हो। किसी योजना में मुनाफा या नुकसान पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि उस योजना में ब्याज की गणना किस प्रकार से की जा रही है।
बहुत सी योजनाएँ हैं, जिनमें ब्याज दर तो ज्यादा होती है, लेकिन फिर भी आपको उतना मुनाफा नहीं मिलता जितना कि किसी कम ब्याज दर वाली योजना में मिल सकता है। इसलिए यह समझना बहुत जरूरी है कि ब्याज की गणना साधारण ब्याज (Simple Interest) के हिसाब से हो रही है या चक्रवृद्धि ब्याज (Compound Interest) के हिसाब से।
चक्रवृद्धि ब्याज की खासियत
इस ब्याज की खासियत ये है कि इसमें न केवल आपके मूलधन पर बल्कि ब्याज के ऊपर भी ब्याज मिलता है। इस तरह आपका पैसा तेजी से बढ़ता है। हालांकि इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि चक्रवृद्धि ब्याज की गणना कितनी बार की जा रही है—तिमाही, छमाही या सालाना। इस लेख में हम दो योजनाओं—NSC (नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट) और पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट (पोस्ट ऑफिस में जमा योजना) का उदाहरण लेकर यह समझेंगे कि ब्याज दर और उसकी गणना किस प्रकार से आपके मुनाफे को प्रभावित करती है।
पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट में निवेश कैसे काम करता है
पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट (TD), जिसे हम पोस्ट ऑफिस की FD भी कह सकते हैं ये 5 साल की योजना है, जिसमें 7.5% की दर से सालाना ब्याज मिलता है। लेकिन, इसकी गणना तिमाही आधार पर की जाती है। इसका मतलब है कि 7.5% के वार्षिक ब्याज को 4 हिस्सों में बांटकर हर तीन महीने पर 1.875% की दर से ब्याज लगाया जाता है।
उदाहरण के तौर पर, अगर आपने 1,00,000 रुपए का निवेश किया, तो पहले तीन महीने के बाद आपको 1,875 रुपए का ब्याज मिलेगा, जिससे आपकी कुल राशि 1,01,875 रुपए हो जाएगी। अगले तीन महीने के बाद, इस पूरी राशि पर फिर से 1.875% का ब्याज मिलेगा। इस तरह, हर तिमाही में ब्याज की गणना होती रहेगी, और 5 साल के अंत तक आपकी कुल राशि 1,44,995 रुपए हो जाएगी।
NSC में निवेश की गणना कैसे होती है
दूसरी तरफ, अगर आप NSC में निवेश करते हैं, तो आपको 7.7% की दर से ब्याज मिलेगा, जो पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट से थोड़ा ज्यादा है। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि NSC में ब्याज की गणना सालाना आधार पर की जाती है। इसका मतलब है कि पहले साल के अंत में आपके 1,00,000 रुपए पर 7.7% के हिसाब से 7,700 रुपए का ब्याज मिलेगा। दूसरे साल में, यह ब्याज आपके मूलधन में जुड़ जाएगा, और इस पूरी नई राशि पर फिर से 7.7% का ब्याज मिलेगा। इस प्रक्रिया से 5 साल के बाद आपकी कुल राशि 1,44,903 रुपए होगी।
दोनों योजनाओं की तुलना
अगर हम दोनों योजनाओं की तुलना करें, तो पाएंगे कि ब्याज दर में मामूली अंतर होने के बावजूद, पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट में मिलने वाला मुनाफा NSC से थोड़ा ज्यादा है। पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट में, 1,00,000 रुपए का निवेश 5 साल बाद 1,44,995 रुपए हो जाता है, जबकि NSC में यही राशि 1,44,903 रुपए होती है। मतलब, पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट में NSC से 92 रुपए ज्यादा मिलते हैं।
यह अंतर सुनने में भले ही बहुत छोटा लगे, लेकिन यह दिखाता है कि पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट की गणना का तरीका NSC से बेहतर है। अगर पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट में भी NSC की तरह 7.7% ब्याज दर होती, तो आपकी कुल राशि 1,46,425 रुपए होती, जो NSC से 1,522 रुपए ज्यादा है।
इस उदाहरण से साफ होता है कि निवेश करते समय सिर्फ ब्याज दर को देखकर ही फैसला नहीं लेना चाहिए। यह भी समझना जरूरी है कि उस ब्याज दर की गणना किस तरीके से हो रही है—तिमाही, छमाही, या सालाना। इसके अलावा, योजना की अवधि और अन्य शर्तों का भी ध्यान रखना जरूरी है। एक समझदार निवेशक वही है जो इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर फैसला करता है, ताकि वह अपने निवेश से अधिकतम मुनाफा कमा सके।